आम जन लोग जिस मंदिर में भडारा कर रहे हैं , उस मन्दिर में तो रोज गरीब आदमी सीरा , हलवा और पुरी रोज तरह- तरह के व्यंजन रोज खाते हैं। और ये कैसा भंडारा तुम्हारा भाई और भाई के बच्चे भुखे बैठे हैं और तुम धर्मादा कर रहे हो, लंगर कर रहे हो और बडे- बडे मंचों मर अतिथि बन रहे हो, सम्मानित हो रहे हो, बडे- बडे साफे पहन रहे हो क्या ये भंडारा है और वो भंडारा जो तुम्हारे बच्चे भूखे बैठे हैं। भाई के बच्चे और तुम्हारे बच्चों में क्या अन्तर है। वो भूखे बैठे है, उनको खाना नसीव नही हो रहा है, तुम बडे - बडे भंडारे कर रहे हो , बडे - बडे आयोजन में भागीदार बन रहे हो । जब आपको ईश्वर ने तुम्हे दिया है आपकी कर्म कमायी के आपके अच्छे कर्म किये हुये थेउसकी पुन्य कमायी आपको दी है आपको देने योग्य बनाया है, तो आपके उन सबका अधिकार है आपके अकेले का अधिकार नही है। आप देख रहे हो कि मैरे पास 50 करोड की संपती है, संपती आपकी नही आप उस संपती के चैकीदार हो। संपती ऐसी संपती वाले कितने चले गयेजमीन के ऊपर जमीन खायी आसमा कैसे - कैसे चले गये।
मन्दिर में भंडारे का सही मायने में विस्तार रूप वर्णन जानिये |
सिकन्दर भी जब दुनिया में आया तोउसके हाथ खाली थे वो दुनिया जीतने आया था लेकिन जब दोनों हाथ जब वह दुनिया से विदा हुआ तो उसके दोनों हाथ खाली थे।
इसलिए हमारा निवेदन है कि ये भंडारे बंद करो घरों के भंडारे चालू करो, तो सुखी हो जाओगे। जो आपको इश्वर ने पैसा दिया है जो आपकी कर्म कमायी का उनको सबसे पहले भाईयों का अधिकार है, बहन बैटी का अधिकार है, गौ सेवा का अधिकार है , साधु- संत का अधिकार है। माता - पिता को खीर ,पुरी और हलवा प्यार से खिला दो वो सबसे बडा भंडारा है। ईश्वर ने आपको दिया है उसका प्रयोग ऐसी जगह करे जो त्रिपत हो जाये और लक्ष्मी भी कृपा से आये और कहे अब तैरा पैसा त्रिपत हो गया है।
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